वेदों को
कई शताब्दियों में (इतिहासकारों के अनुसार 1500 से 600 ईसा पूर्व के मध्य, लगभग 2600
से 3500 वर्ष पूर्व) जिसे वैदिक काल भी कहा जाता है, रचित किया गया था. वेद प्राचीनतम हिंदू ग्रंथ हैं. यह संस्कृत भाषा में तथा
सर्वप्रथम ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे. ऐसी मान्यता है वेद परमात्मा के मुख से निकले हुये
वाक्य हैं.
वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'विद्' शब्द से हुई है. विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, और "वेद" शब्द का अर्थ है "जो जाना गया" अर्थात "ज्ञान” या “सत्य".
इसलिये वेद को "ज्ञान का ग्रंथ कहा जा सकता है. वेदों को "संहिता" भी कहा जाता है. चूँकि वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति
भी कहा जाता हैं.
हिंदू मान्यता के अनुसार ज्ञान शाश्वत है अर्थात सृष्टि की रचना
के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा. दिव्य ज्ञान का यह प्रवाह
गुरु के श्रीमुख से सुनकर शिष्यों द्वारा विस्तार पाता रहा.
वेद संख्या में चार हैं जो हिन्दू धर्म के आधार स्तंभ हैं. सृष्टि के आरम्भ में चार
ऋषियों के ह्रदय में ईश्वर ने चार वेदों का प्रकाश किया, ये चार ऋषि हैं-
1-
अग्नि-
ऋग्वेद (विज्ञान सम्बंधित या विज्ञान कांड)
2-
वायु- यजुर्वेद (कर्म
सम्बंधित या कर्म कांड)
3-
आदित्य- सामवेद (उपासना
सम्बंधित या उपासना कांड)
4-
अंगिरा- अथर्ववेद (शरीर
और ब्रह्म सम्बंधित या शरीर और ब्रह्म ज्ञान).
महर्षि
वेदव्यास ने उसे चार प्रभागों में सम्पादित करके व्यवस्थित किया. उस क्रम में ऋग्वेद
पैल ऋषि को, यजुर्वेद वैशम्पायन ऋषि को, सामवेद जैमिनी ऋषि को तथा अथर्ववेद सुमन्तु
ऋषि को सौंपा गया. सभी चार वेदों में आज लगभग 20,416 मन्त्र ही मिलते हैं :-
वेदों को
कई ऋषियों द्वारा रचित और प्रसारित किया गया, कुछ नाम हैं- विश्वामित्र ऋषि, अंगिरस
ऋषि, कण्व ऋषि, वसिष्ठ ऋषि, विश्वामित्र ऋषि, अत्रि ऋषि, भृगु ऋषि, कश्यप ऋषि, गृत्समद
ऋषि, अगस्त्य ऋषि, भरत ऋषि, गौतम ऋषि, पराशर ऋषि, पैल ऋषि, वैशम्पायन ऋषि और अथर्व ऋषि आदि.
ऋग्वेद – ऋग्वेद में 10 मंडलों जिनमें 1,056 सूक्त (वेद मंत्रों के समूह) हैं. इन सबमे लगभग 10,589 मन्त्र (जिन्हें “ऋचा” भी कहते हैं) मिलते है. ऋग्वेद सबसे पहले रचित हुए. ऋग्वेद के आठ मंडल (दूसरे मंडल से आठवें मंडल) पहले रचित हुए. पहला और दसवां मंडल बाद में जोड़े गए. ज्यादातर मन्त्र ईश्वर के विभिन्न रूपों (मूलतः अग्नि, सूर्य, इंद्र, विष्णु, वायु और मरुत, अश्विनी कुमार, मित्र, वरुण, पुषा -समृद्धि के देवता, उषा-प्रातः की देवी आदि देवताओं) के प्रार्थना के लिए हैं. लेकिन काफी मन्त्रों में ईश्वर कौन है, सृष्टि की रचना कैसे हुयी, ईश्वर और मनुष्यों के बीच सम्बन्ध क्या है तथा समाज के कर्म आधारित विभाजन के रूपों का भी वर्णन आदि मिलता है.
यजुर्वेद - यजुर्वेद में 40 अध्याय में लगभग 1,975 मन्त्र (गद्य और पद्य दोनों) मिलते है. गद्य मन्त्रों की अधिकता के कारण यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ माना जाता है. इसे ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है. ऋग्वेद के 663 मन्त्र यथावत यजुर्वेद में हैं. यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है. यजुस के नाम पर ही इस वेद का नाम यजुस+वेद (=यजुर्वेद) शब्दों की संधि से बना है. यज् का अर्थ समर्पण से होता है. पदार्थ (जैसे ईंधन, घी, आदि), कर्म (सेवा, तर्पण ), श्राद्ध, योग, इंद्रिय निग्रह इत्यादि के हवन को यजन यानि समर्पण की क्रिया कहा गया है.
पाणिनि ने यज् धातु का अर्थ देव पूजन, संगतिकरण एवं दान किया है. अतः इस आधार पर, अपने से उत्कृष्ट चेतन सत्ता के प्रति श्रद्धा का विकास एवं उसकी अभिव्यक्ति, उस दिव्य अनुशासन में संगठित होकर कर्म का अनुष्ठान तथा इस प्रकार प्राप्त विभूतियों को कल्याणकारी प्रयोजनों के लिए समर्पित करना यह सब क्रियाएं यज्ञ के अंतर्गत आ जाती हैं.
इस वेद में अधिकांशतः यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं, अतः यह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है. इनमे कर्मकाण्ड के कई यज्ञों का विवरण है, जैसे- अग्निहोत्र यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ, वाजपेय यज्ञ, सोमयज्ञ, राजसूय यज्ञ, अग्निचयन यज्ञ आदि.
सामवेद -सामवेद में तीन भाग है- (1)-पूर्वाचिक, (2)-उत्तरार्चिक, (3)-महानाम्नी आर्चिक, जिनमें लगभग 15 प्रपाठक हैं और कुल 1,875 मन्त्र (जिन्हें “सामानि” भी कहते हैं) मिलते हैं. इसके 1,800 मन्त्र ऋग्वेद से लिए गए हैं और 75 नए मन्त्र हैं जो आश्वलायन शाखा में नहीं मिलते पर शांखायन शाखा में मिलते हैं. 17 मन्त्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं. यह मन्त्र गेय हैं. इनको ग्राम गान या समूह जन गान या अरण्य गान या परिव्राजक तपस्वी गान के रूप में भी विभाजित किया जा सकता है. यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय ये मन्त्र गाये जाते हैं.
सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है और फिर भी इसकी प्रतिष्ठा सर्वाधिक है, जिसका एक कारण गीता में कृष्ण द्वारा "वेदानां सामवेदोऽस्मि" कहना भी है.
अथर्ववेद – अथर्व वेद में 20 कांड हैं जिनमें लगभग 5,977 मन्त्र मिलते हैं. यह वेदों में से चौथा वेद है. ज्यादातर गेय छंद हैं, लेकिन कुछ गद्य भी हैं, जो "चमत्कारिक मंत्र", या "लोक चिकित्सा मंत्र" से संबंधित हैं. इसमें देवताओं की स्तुति के साथ जादू, चमत्कार, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं. इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई. इसमें ॠग्वेद और सामवेद से भी मन्त्र लिये गये हैं.
चारों वेद विभिन्न शाखाओं से भारतीय भूभाग में चारों ओर फैले थे. प्रत्येक शाखा एक विशेष क्षेत्र या राज्य के किसी प्राचीन समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था.
वैदिक काल के पश्चात्, स्थानीय स्तरों पर वेदों को विभिन्न क्षेत्रों में कई बार रूपांतरित किया गया होगा, जिससे विभिन्न शाखाओं में प्रचलित मूल पाठों में थोड़ी बहुत भिन्नता आ गयी और ऐसी संभावना मानी जाती है कि संभवतः कुछ भ्रष्ट मन्त्रों को भी मूल पाठ के साथ जोड़ दिया गया होगा जो कि संभवतः मूलतः वैदिक मन्त्र नहीं रहे होंगे.
वैदिक ग्रंथों को पढ़ने के बाद यह अनुभव होता है कि, हमारा समाज हमेशा से श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों, सत्य तथा न्याय पर आधारित रहा है.
मध्य काल में हिन्दू समाज में उत्पन्न विकृतियों के लिए कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोग जिम्मेदार हैं. जिस प्रकार जिहादी लोगों द्वारा धर्म के नाम पर किये गए हत्यायों, मार-काट और बम विस्फोटों के लिए अरबिक रिलिजन को जिम्मेदार नहीं माना जाता, ठीक उसी प्रकार हिन्दू समाज में, कुछ लोगों द्वारा किये गए आपराधिक कृत्यों के लिए, हिन्दू धर्म और पूरे समाज को दोषी ठहराना एक मूर्ख और विकृत मानसिकता है.
अतः वेद, उपनिषद्, भागवत गीता आदि वैदिक ग्रंथों को अनुसरण करने वाले वैदिक हिन्दू ऐसे आपराधिक कृत्यों की भर्त्सना करते हुए अपने को उन कृत्यों से मुक्त मानता है.
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